गुरुवार, 11 अगस्त 2016

चाणक्य नीति: (Chanakya Niti:)

जिस व्यक्ति के अन्तः करण में कामवासना कुटिलता बेईमानी भरी होती है, वह यदि सैंकड़ो बार तीर्थ स्नान करे तो भी पवित्र नहीं हो सकता ।
जिस प्रकार शराब भरने के बर्तन को आग पर तपाने पर भी शुद्ध नहीं हो सकता ।
जिस प्रकार नीम की जड़ को घी दुध से सिंचने पर भी उसमे मिठास नहीं आ सकता ।
दुर्जन व्यक्ति को अनेक प्रकार के उपदेश देने पर भी उसमे सज्जनता नहीं आ सकती।
अर्थात अन्त: करण सुधारने के लिए प्रणायाम करना होगा तभी शुद्धता आएगी ।

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